Thursday, July 31, 2008

संसार के महा प्रश्न



संभवतया हम मे से कुछ ही मनुष्य होंगें जिन्होनें गंभीरता से कभी इन प्रश्नों को ना सोचा
हो, लेकिन शायद ही कभी किसी को अपने इन सवालों का सही जबाब मिला हो.
1. सबसे बड़ा सवाल क्या ईश्वर का कोई अस्तित्व है ?या केवल जड़ तत्व और उर्जा(इनर्जी) के अलावा कुछ नहीँ है ?
2. क्या ये विश्व विचारों का विश्व है या वा केवल जड़ पदार्थ से ही बना है ? ये जड़ पदार्थ भी क्या किसी और पदार्थ से बना है ?
3. ये विश्व यांत्रिक नियमों से चल रहा है या इसमें कोई योजना , और उद्देश्य छिपा है ?
4. क्या हम विश्व के संबंध मे किसी धार्मिक मत को आज भी पूरे विश्वास के साथ मान सकते हैं ?
5. क्या मेरा मन जो इस समय ये वेचारिक कार्य कर रहा है वा भी एक जड़ तत्व से अलग कोई वस्तु है या फिर कुछ उर्जा के परमाणुओं का एक समूह है ?
6. में जीवित हूँ तो ये जीवन क्या है ? एक दिन में मर जाउँगा, तो ये म्र्त्यु क्या है?में मर कर यहाँ से फि कहाँ जाता हूँ?
7. निद्रा मे दिखाई देने वाले स्वप्न क्या है ये जीवन सत्य है या निद्रा मे दिखाई देने वाला जीवन ? क्या स्वपनों का सत्यता से अथवा पिछ्ले जन्म से कोई संबंध होता है ?
8. क्या ये सत्य है कि प्राणी बार-बार जन्म लेता है क्या जिंदगी भी एक स्वप्न ही है ?
9. आत्मा क्या है ?
10. रोज में अनेक कार्य करता हूँ उनमें कुछ उचित होते है तो कुछ अनुचित, इन कार्यो मे उचित क्या है और अनुचित क्या है ?
11. पाप और पुण्य की परिभाषा क्या है ?
12. क्या धन, नाम और अपने सुख के लिए प्रयत्न करना ही जीवन के उच्च मूल्य हैं या इनके अतिरिक्त भी कुछ और मूल्य हैं जो इनसे भी उच्च्तर हों जेसे- शांति, सरलता, आस्था, प्रेम, कला का आनंद और ग्यान विग्यान का अनुशीलन ?
13. प्रकृति और कला की अनेक सुंदर कृतियाँ हमारे चारों तरफ़ हैं उनमें कुछ सुंदर हैं तो कुछ कुरूप, तो ये सुंदरता क्या है ?
14. वह क्या है जिसका आनंद हम संगीत मे लेते हैं या जिसकी प्रशंसा हम कलाकारों की कलाकृतियों मे करते हैं ?
15. में सूर्यास्त की, बादलों से आँख मिचौंनी खेलते चंद्रमा की, बागों मे फूलों की एवं इसके अलावा भी अनेक चीज़ों की प्रशंसाकरता हूँ, फिर सोचता हूँ यदि इन्हें देखने के लिए आँख, सुनने के लिए कान, सुगंध के लिए नाक, स्वाद के लिए जिव्हा व इनसब को महसूस करने के लिए इनके पिछे एक स्वस्थ मस्तिष्क ना होता तो भी क्या मुझे ये प्रकृति इतनी ही सुंदर लगती ?
16. में हर तरफ पद और शक्ति पाने के लिए लोगों को अच्छे - बुरे हर प्रकार के प्रयास करते हुए देखता हूँ और सोचता हूँ कि इसका अंतिम परिणाम क्या है?
अंत मे में ये ही सोचता हूँ कि संसार मे सर्वोत्तम क्या है ?
इन बड़े-बड़े प्रश्नों को उठाना, उन पर चिंतन करना, उनका धार्मिक व वेग्यनिक रूप से अध्ययन करना और इन सवालों का उत्तर प्राप्त करना भी मेरा एक कार्य है

Friday, July 25, 2008

खुला आकाश

पंखों पे अपने क्यों तुम्हें विश्वास ही नही
आकाश का तुमको जरा अहसास ही नहीं
दीवारों दर से भी न कहें किससे हम
को हाल और कोई पास ही नहीनी
जिंदगी की राह में हैं हर तरह के पेड़इसमें बबूल भी हैं अमलतास ही
नहींअपने गमों के दौर की लम्बी है दास्तानअपनी खुशी का कुछ मगर इतिहास ही
नहींतुम हो कि कोई और हो इससे नहीं गरजअब तो किसी का साथ हमें रास ही
नहींअपने महीने हैं सभी रमजान की
तरहरोजे हमारे रोज हैं कुछ खास ही नहीं

Friday, July 18, 2008

जीने का हक

पावन बाइबिल में जब ख़ुदा ने मिट्टी से इन्सान बनाया और उसे जन्नत में बसाया तो उसे आदम (प्रथम मानव) के अकेलेपन पर तरस आया तब ख़ुदा ने उसे गहरी नींद में सुलाकर उसकी पसलियों में से एक को निकाल कर उसे औरत का रुप दिया और उसे आदम का साथी बनाया जीवन की गाड़ी के दो पहिये कहे जाने वाले नर और नारी के लिए इस पुरुष प्रधान समाज की बनाई हुई मान्यताएँ हैं, जिससे लड़का और लड़की की संख्या का अनुपात ख़तरे में पड़ता जा रहा है निदा फ़ाज़ली कहते हैं

कैसा शजरा (वंशावली) कहाँ के दीन धरम

ख़ून तो जिस्म ही बनाता हैजिस्म को

शख़्सियत बनाने में सिर्फ़ माहौल काम आता है

मैं जहाँ हूँ, वहीं है घर मेराउसी घर में रिवाज है

मेरा इसी घर से समाज है मेरा

जाहिर है समाज बदला हैं पर रिवायते नही

इव ने एडम को था जन्नत से निकलवाया
कलंक उस कसूर का मिट आज तलक न पाया
हर जन्म हर युग में सज़ा नारी ने इसकी पाई
वफा करके भी हिस्से में उसके आई बेवफाई
पत्नी धर्म सीता ने अन्तिम सांस तक निभाया
परन्तु अकारण राम ने उसे वन में था पठाया
द्रोपदी के वीर पति थे उसके सिर का ताज
पर भरी सभा में उसकी लगी दांव पर लाज
कलियुग में लगाई जाती सरे-राह उसकी बोली
कोई खींचता है आँचल कोई तार करे चोली
जिस जननी ने जन्म दे इस दुनिया को बसाया
अनेकों बार कोख में गया उसको ही मिटाया
बेटी का जन्म आज भी नज़रों को है झुकाता
है बाँधती वो घर को पर पराई कहा जाता
जीवन के हर क्षेत्र में सदा आगे है खड़ी
पर दहेज की वेदी पर अक्सर बलि है चढ़ी
फर्ज़ और प्रेम के पाटों में रहे पिसती
सौगात तो अनमोल है पर कौड़ियों में बिकती
हे नाथ! नारी जाति को अब तो क्षमा का दान दो
अन्य प्राणी जगत् की तरह जीने का हक समान दो