पंखों पे अपने क्यों तुम्हें विश्वास ही नही
आकाश का तुमको जरा अहसास ही नहीं
दीवारों दर से भी न कहें किससे हम
को हाल और कोई पास ही नहीनी
जिंदगी की राह में हैं हर तरह के पेड़इसमें बबूल भी हैं अमलतास ही
नहींअपने गमों के दौर की लम्बी है दास्तानअपनी खुशी का कुछ मगर इतिहास ही
नहींतुम हो कि कोई और हो इससे नहीं गरजअब तो किसी का साथ हमें रास ही
नहींअपने महीने हैं सभी रमजान की
तरहरोजे हमारे रोज हैं कुछ खास ही नहीं
Friday, July 25, 2008
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2 comments:
वाह! बहुत सुन्दर.बहुत बधाई.
पंख से कुछ नहींं होता
हौसलों से उड़ान होती है.......
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