Saturday, October 4, 2008

नाम,काम, शौक

नाम : इंसान
काम : स्वार्थ
शौक : कपट
अनुभव : इंसानियत को मारना
इच्छा ? महत्वाकांक्षा : पता नही

समस्त वातावरण शोकातुर. एक घटना घट गयी है,यहा. एक इंसान ने इंसान का खून किया है. बाकी सब इंसान स्तब्ध है. इंसान मर गया. मगर ऊसे मारनेवाला इंसान कौन?

ग़मगीन नीरवता को चीरती हुई एक राजकीय आवाज़ : चलो, हटो, दूर हटो, मंत्री जी आ रहे है.

जाँच करने के लीये दिया वचन, आश्वासन, क्रूत्रिम वातावरण और नीरवता को च्छोद्कर अपनी दिन चर्या मे बिखरे हुए इंसान.
समाचार का वक्त और इंसान मौन. इंसान के समाचार :........... ज़ख्मी, मरे, लड़े, कटे, गीरे. बहरे कानो को छूती हुई एक सहानूभूति की लहर और फिर चाय की चूसकिया.

मैं, मौन क्यों हूँ?............क्यों???????
क्यों........मूझे कूछ नही होता?
मेरा खून किस लिए जम गया है?
मैं क्यों फ्रीज कोल्ड हो गया हूँ?

मेरी दादी माँ की कहानियों के इंसानो की तरह क्यों मैं घोड़े पर सवार होकर सात समूउनदर पार के राक्षस के पंजे मैं फासी राजकुउमारी को बचा नही सकता?.................क्यों?

मेरे आसपास के इंसानों के साथ मैं कैसी बनावट कार रहा हूँ?
दीवार की तरह, सीमेंट की तरह, पत्थर की तरह कठोर बन गया हूँ.

मूझपर क्यो कोई असर नही होता? मेरा किसी सा कोई लेनदेन नही. ऊन इतिहास के पन्नो पर अंकित शूरवीर सच होंगे? प्रजापालक राजा रात को भेस बदलकर प्रजा के सूख दूख के समाचार जानता है. क्यों विश्वास नही होता ऐसी बातों का? बिना ताले के मकान, विश्वास का सिंचन, समूनदर की गहराई जैसे ऊडार और भोले घाले इंसान. मूफ्त का खाना नही और अतिथि देवो भाव:. ओह माय गोड्ड. आय कांट बिलीव दिस.

भगवान का श्रेष्ठ सर्जन ............. इंसान !!!!
मानवता के लिए मर मिटनेवाला और इंसानियत के लिए जान छीदकने वाला इंसान आज कहाँ है?

इंसान !!!!!

आज धरती पर गंदगी की परत फैलाकर, समंदर को मैला कर के, आकाश पर अधिपत्य जमाने की धूंन मे अपनी इंसानियत को सम्हाल ना सका.

श.......शा...................श................... सावधान, विश्वास घात, दगा..............

बी अलर्ट !!!! इंसान कन्फ्यूज हो गया है. वह सो नही सकता, मजे लूट नही सकता, क्योंकि इंसान डरा हुआ है, इंसान का नाम इंसान के हिट लिस्ट मैं है. इंसान अशांत है और शांति के लिए यूध की तैयारिया कर रहा है.

दर से घिरा हुआ, मानसिक विकरउटी से पीड़ित और फटे हुए चरित्रा से गूनहित ज़िंदगी को छुपाने का व्यर्थ प्रयत्ना करता हुआ, ....इंसान!!

इंसान खो गया है. .....................
फला उम्र का, फला प्रदेश का, फला धर्म का, फला कौम का...........इंसान गुम हो गया है. यदि किसी को इंसान मील जाए तो उसे गूज़रिश है की इंसान को इंसान के पते पर जानकारी दे........मुझे......

एक इंसान को ख्वाब आया......... सभी इंसान पक्षियों की तरह निस्वार्थ, मूक्त, ...... मोर की तरह चहकते और तारों की तरह टिमटिमाते इंसान..........आआआआआआ हा हहहहहहहहहा!!!!!.....श्वान की तरह्व वफादार और विश्वसनीय.....इंसान.....अश्व की तरह शक्तिशाली, इंसान. हिरण और हंस की तरह सज्जन इंसान.......चिड़िया, गिलहरी की तरह निर्दोष और भोले भाले इंसान...!!!!!!!!!!!!

सरकती हुई रात के साथ ख्वाबो की यादे मीठी लगाने लगी और एक पल तो लगा की ईश्वर से प्रार्थना करे की इंसान की अदाकारी मैं निष्फल जाने के बदले मैं हमे पशु जन्म दे.

लेकिन यदि भगवान इंसान को पशू जन्मा देगा तो सत्य छिइक उउठेगा और कहेगा की गूनाह गारों को इनाम?????????
नही.........नही...... प्रभू!!! हमे इंसानियत को लज्जित नही सरना है. मानवता का खून नही करना.

गूनाहों की रातो से, हरे भरे ख्वाबो से खिलती हुई इंसानियत की सुउबाह ले आ ... प्रभू!!!

हमारे प्रायस्चित के लिए हमे इंसानियत के प्लेट फार्म पर एक बार फिर..... फिर एक बार इंसानियत का नाटक करने दे... प्रभू!! हम अपनी भूमिका निभाएंगे . हम आपके दिग्दर्शन मे बेस्ट एक्टिंग का एवार्ड जीत जाएंगे....................

Thursday, July 31, 2008

संसार के महा प्रश्न



संभवतया हम मे से कुछ ही मनुष्य होंगें जिन्होनें गंभीरता से कभी इन प्रश्नों को ना सोचा
हो, लेकिन शायद ही कभी किसी को अपने इन सवालों का सही जबाब मिला हो.
1. सबसे बड़ा सवाल क्या ईश्वर का कोई अस्तित्व है ?या केवल जड़ तत्व और उर्जा(इनर्जी) के अलावा कुछ नहीँ है ?
2. क्या ये विश्व विचारों का विश्व है या वा केवल जड़ पदार्थ से ही बना है ? ये जड़ पदार्थ भी क्या किसी और पदार्थ से बना है ?
3. ये विश्व यांत्रिक नियमों से चल रहा है या इसमें कोई योजना , और उद्देश्य छिपा है ?
4. क्या हम विश्व के संबंध मे किसी धार्मिक मत को आज भी पूरे विश्वास के साथ मान सकते हैं ?
5. क्या मेरा मन जो इस समय ये वेचारिक कार्य कर रहा है वा भी एक जड़ तत्व से अलग कोई वस्तु है या फिर कुछ उर्जा के परमाणुओं का एक समूह है ?
6. में जीवित हूँ तो ये जीवन क्या है ? एक दिन में मर जाउँगा, तो ये म्र्त्यु क्या है?में मर कर यहाँ से फि कहाँ जाता हूँ?
7. निद्रा मे दिखाई देने वाले स्वप्न क्या है ये जीवन सत्य है या निद्रा मे दिखाई देने वाला जीवन ? क्या स्वपनों का सत्यता से अथवा पिछ्ले जन्म से कोई संबंध होता है ?
8. क्या ये सत्य है कि प्राणी बार-बार जन्म लेता है क्या जिंदगी भी एक स्वप्न ही है ?
9. आत्मा क्या है ?
10. रोज में अनेक कार्य करता हूँ उनमें कुछ उचित होते है तो कुछ अनुचित, इन कार्यो मे उचित क्या है और अनुचित क्या है ?
11. पाप और पुण्य की परिभाषा क्या है ?
12. क्या धन, नाम और अपने सुख के लिए प्रयत्न करना ही जीवन के उच्च मूल्य हैं या इनके अतिरिक्त भी कुछ और मूल्य हैं जो इनसे भी उच्च्तर हों जेसे- शांति, सरलता, आस्था, प्रेम, कला का आनंद और ग्यान विग्यान का अनुशीलन ?
13. प्रकृति और कला की अनेक सुंदर कृतियाँ हमारे चारों तरफ़ हैं उनमें कुछ सुंदर हैं तो कुछ कुरूप, तो ये सुंदरता क्या है ?
14. वह क्या है जिसका आनंद हम संगीत मे लेते हैं या जिसकी प्रशंसा हम कलाकारों की कलाकृतियों मे करते हैं ?
15. में सूर्यास्त की, बादलों से आँख मिचौंनी खेलते चंद्रमा की, बागों मे फूलों की एवं इसके अलावा भी अनेक चीज़ों की प्रशंसाकरता हूँ, फिर सोचता हूँ यदि इन्हें देखने के लिए आँख, सुनने के लिए कान, सुगंध के लिए नाक, स्वाद के लिए जिव्हा व इनसब को महसूस करने के लिए इनके पिछे एक स्वस्थ मस्तिष्क ना होता तो भी क्या मुझे ये प्रकृति इतनी ही सुंदर लगती ?
16. में हर तरफ पद और शक्ति पाने के लिए लोगों को अच्छे - बुरे हर प्रकार के प्रयास करते हुए देखता हूँ और सोचता हूँ कि इसका अंतिम परिणाम क्या है?
अंत मे में ये ही सोचता हूँ कि संसार मे सर्वोत्तम क्या है ?
इन बड़े-बड़े प्रश्नों को उठाना, उन पर चिंतन करना, उनका धार्मिक व वेग्यनिक रूप से अध्ययन करना और इन सवालों का उत्तर प्राप्त करना भी मेरा एक कार्य है

Friday, July 25, 2008

खुला आकाश

पंखों पे अपने क्यों तुम्हें विश्वास ही नही
आकाश का तुमको जरा अहसास ही नहीं
दीवारों दर से भी न कहें किससे हम
को हाल और कोई पास ही नहीनी
जिंदगी की राह में हैं हर तरह के पेड़इसमें बबूल भी हैं अमलतास ही
नहींअपने गमों के दौर की लम्बी है दास्तानअपनी खुशी का कुछ मगर इतिहास ही
नहींतुम हो कि कोई और हो इससे नहीं गरजअब तो किसी का साथ हमें रास ही
नहींअपने महीने हैं सभी रमजान की
तरहरोजे हमारे रोज हैं कुछ खास ही नहीं

Friday, July 18, 2008

जीने का हक

पावन बाइबिल में जब ख़ुदा ने मिट्टी से इन्सान बनाया और उसे जन्नत में बसाया तो उसे आदम (प्रथम मानव) के अकेलेपन पर तरस आया तब ख़ुदा ने उसे गहरी नींद में सुलाकर उसकी पसलियों में से एक को निकाल कर उसे औरत का रुप दिया और उसे आदम का साथी बनाया जीवन की गाड़ी के दो पहिये कहे जाने वाले नर और नारी के लिए इस पुरुष प्रधान समाज की बनाई हुई मान्यताएँ हैं, जिससे लड़का और लड़की की संख्या का अनुपात ख़तरे में पड़ता जा रहा है निदा फ़ाज़ली कहते हैं

कैसा शजरा (वंशावली) कहाँ के दीन धरम

ख़ून तो जिस्म ही बनाता हैजिस्म को

शख़्सियत बनाने में सिर्फ़ माहौल काम आता है

मैं जहाँ हूँ, वहीं है घर मेराउसी घर में रिवाज है

मेरा इसी घर से समाज है मेरा

जाहिर है समाज बदला हैं पर रिवायते नही

इव ने एडम को था जन्नत से निकलवाया
कलंक उस कसूर का मिट आज तलक न पाया
हर जन्म हर युग में सज़ा नारी ने इसकी पाई
वफा करके भी हिस्से में उसके आई बेवफाई
पत्नी धर्म सीता ने अन्तिम सांस तक निभाया
परन्तु अकारण राम ने उसे वन में था पठाया
द्रोपदी के वीर पति थे उसके सिर का ताज
पर भरी सभा में उसकी लगी दांव पर लाज
कलियुग में लगाई जाती सरे-राह उसकी बोली
कोई खींचता है आँचल कोई तार करे चोली
जिस जननी ने जन्म दे इस दुनिया को बसाया
अनेकों बार कोख में गया उसको ही मिटाया
बेटी का जन्म आज भी नज़रों को है झुकाता
है बाँधती वो घर को पर पराई कहा जाता
जीवन के हर क्षेत्र में सदा आगे है खड़ी
पर दहेज की वेदी पर अक्सर बलि है चढ़ी
फर्ज़ और प्रेम के पाटों में रहे पिसती
सौगात तो अनमोल है पर कौड़ियों में बिकती
हे नाथ! नारी जाति को अब तो क्षमा का दान दो
अन्य प्राणी जगत् की तरह जीने का हक समान दो

Saturday, June 28, 2008

माँ





"माँ"
"गर खुदा कहे किज्न्नत का जलवा है मेरी पनाहों में...


तो मैं कहूँ ,वहाँ भी किसी 'माँ' की हस्ती होगी,नज़ारे कितने भी हो मौसम-ए-दुनिया के रहबर,


हर पहलू मे 'माँ' की कायनात होगी"

Saturday, May 31, 2008

Petrol Price Hike…

Petrol Price Hike…
Nowadays the petrol price hike is spoken as a big issue. Many are against the price hike. But I feel that the price of the petrol must be still increased in our country… The profit which the government gets because of the petrol price hike must be used in some useful ways.In our country majority of our import bill is because of Oil. If we reduce our oil imports by a small percentages then that small percentage of the money which the government saves can be used for many things, and in order to reduce the imports the usage must be less... and to reduce the usage the price of the oil must be more...The first thing which will come to our mind when oil price raise is fuel for our vehicle... but if we are those who use public mode of transport we wont talk abt the fuel price hike. For example say u travel by MTC bus, the increase in the petrol price will be shared be all those who use that MTC bus right? The government must gradually improve the public transport facility…If the public transport facility is good then with the increase in petrol price all people will gradually shift to public transport... because of this apart from reducing the import bill the government will also get revenue from the transport service… doesn’t that sound good?But on the other side the price hike has its own disadvantages too…The transportation charges of vegetables food items and other things will also go up. This will result in raise in price of vegetables and other essential items… And with the raise of petrol price the automobile industry will also be affected and this may slow down our economy... and this will affect many sectors directly or indirectly with these things we can argue that the petrol price hike is bad...what ever it might be Oil is a non renewable source of energy. More over burning the oil is going to pollute our environment and will make the world a bad place to live for us and also for our future generations... so I feel good that the price hike reduces the consumption of oil atleast by a small percentage :)

Tuesday, May 13, 2008

REALLY MISS THEM, DO U ........... ?

When gulli-danda and kanche (marbles) were more popular than cricket..
When we always had friends to play aais-paais (I Spy),chhepan-chhepai and pitthoo anytime .
When we desperately waited for 'yeh jo hai jindagi'..
When chitrahaar, vikram-baitaal, dada daadi ki kahaniyaan were so fulfilling …..
When there was just one tv in every five houses and
When bisleris were not sold in the trains and we were worrying if papas will get back into the train in time or not when they were getting down at stations to fill up the water bottle ...
When we were going to bed by 9.00pm sharp except for the 'yeh jo hai jindagi' day ..
When Holis & Diwalis meant mostly hand-made pakwaans and sweets and moms seeking our help while preparing them ..
When Maths teachers were not worried of our mummys and papas while slapping/beating us ..
When we were exchanging comics and stamps and chacha-chaudaris and billus were our heroes ...
When we were in nanihaals every summer and loved flying kites and plucking and eating unripe mangoes and leechis ...
When one movie every Sunday evening on television was more than asked for and 'ek do teen chaar' and 'Rajni' inspired us ..
When 50 paisa meant at least 10 toffees ....
When left over pages of the last years notebooks were used for rough work or even fair work .
When 'chelpark' and 'natraaj' were encouraged against 'reynolds and family' ..
When the first rain meant getting drenched and playing in water and mud and making 'kaagaj ki kishtis' ...
When there were no phones to tell friends that we will be at their homes at six in the evening .
When our parents always had 15 paise blue colored 'antardesis' and 5
paise machli wale stamps at home
When we remembered tens of jokes and were not finding 'ice-cream and papa' type jokes foolish enough to stop us from laughing ...
When we were not seeing patakhes on Diwalis and gulaals on Holis as air and noise polluting or allergic agents ....
the list can be endless ..
on the serious note I would like to summarize with ..
When we were using our hearts more than our brains, even for
scientifically brainy activities like 'thinking' and 'deciding' ..
When we were crying and laughing more often, more openly and more sincerily . When we were enjoying our present more than worrying about our future. When being emotional was not synonymous to being weak .. When sharing worries and happinesses didnt mean getting vulnerable to the listener .
When blacks and whites were the favourite colors instead of greys .
When journeys also were important and not just the destinations ..
When life was a passenger's sleeper giving enough time and opportunity to enjoy the sceneries from its open and transparent glass windows instead of some superfast's second ac with its curtained, closed and dark windows ...
I really miss them. do u…….?,