Friday, November 30, 2007

विवेक भटनागर की ग़ज़लें

विवेक भटनागर
शांत वाणी और मधुर स्वाभाव के विवेक भटनागर अमर उजाला में सम्पादकीय टीम के सम्मानित सदस्य हैं, यह शख्सियत कविता और ग़ज़ल में माहिर है, इनकी रचनाओ में स्वस्थ परंपरा और ताजगी का एहसास तो है ही, गज़ब कि संवेदनशीलता भी है थोडे में कहा जाये, तो कम बोलने वाली वजनी शख्सियत


हम गधे हैं तो गधा ही रहने दो, क्या हर्ज़ है
आपसे हर हाल में बेहतर हैं, आदाब अर्ज़ है

क्यो हमे इंसान बनाने के लिए बेचैन हैं
हम गधे हैं, कैसे समझे आपकी क्या गरज हैं

आज का संगीत सुनकर हम भी खुद शर्मा गए
रेंकने की क्या अनोखी संशोधित तर्ज़ है

हम गधे हैं मगर इतने गधे भी तो नहीं
ये न समझे एक सेहतमंद को क्या मर्ज़ है

Wednesday, November 28, 2007

खंडहर होते सपने

पत्रकारिता की दहलीज़ पर जब कोई नौनिहाल जोश, जज्बे और उम्मीद के साथ कदम रखता है, तो शुरुआत मे उसे ये दुनिया हसीं लगती है, लेकिन समय बीतने के साथ हकीकते खुद सामने आ जाती है, उसके सपने किसी रेत के महल की तरह भरभरा कर गिर जाते है
बडे लगन और त्याग से पढाया करते थे
अनुशासन और आदर्श की बातें बताया करते थे
उसने एक बडे शिक्षण संस्थान मी दाखिला लिया
लोग कहने लगे चलो जीवन भर कष्ट सहा लेकिन बच्चों को बना दिया
अम्मा लगी सपने बुनने बाबू जी लगे दिन गिनने
उसकी भी होने लगी बड़ी बड़ी बाते लंबी लंबी मुलाकातें
साल बीता तो पता चला तो ठगे गए
बड़ी बड़ी बातें और वादे ही उसके साथ दगे गए
उमींदों की मंजिल बिखर गयी सपनो का खंडहर हो गया
अम्मा बाबू जी के सपनो का महल उसकी आँखों के सामने बहने लगा
क्या दे जवाब कैसे करू खंडहर होते सपनो को पूरा
असहाय असमंजस की स्थिति मे हूँ अजब परिस्थति मे हूँ
लोग कहते है उसे कि बड़ी प्रतिभा है बड़ा मेहनती है इस पर करता है गहन चिंतन तो होने लगती है चिंता
कुछ अपने लोग समझाते है उसे बेटा चिंता मत करो, उम्मीद रखो
तो कुछ अपने लोग समझाते है बड़ी बड़ी बाते और कहते है कान्टेक्ट मे रहो
दूसरो की सुनकर सह लेता था वो लेकिन अम्मा बाबू जी की उमींदों ने दिल को भेद दिया
क्योंकि उनके सपनो मे ही उसके सपने है
कुछ लोग सफल हुए क्योंकि वे उनके अपने है
जीनोहने अपनी पैठ बना रखी है इंडस्ट्री मे
वो तो आउट हो गया पहली कमेंट्री मे
कुछ लोगो को यह कविता भा गयी
कुछ लोगो के दिल मे समां गयी
किसी के दिल का दर्द तो किसी के लिए मौसम सर्द
यह अकेले उसकी नही कहानी है आज उसकी तो कल किसी और कि जुबानी है