विवेक भटनागर
शांत वाणी और मधुर स्वाभाव के विवेक भटनागर अमर उजाला में सम्पादकीय टीम के सम्मानित सदस्य हैं, यह शख्सियत कविता और ग़ज़ल में माहिर है, इनकी रचनाओ में स्वस्थ परंपरा और ताजगी का एहसास तो है ही, गज़ब कि संवेदनशीलता भी है थोडे में कहा जाये, तो कम बोलने वाली वजनी शख्सियत
हम गधे हैं तो गधा ही रहने दो, क्या हर्ज़ है
आपसे हर हाल में बेहतर हैं, आदाब अर्ज़ है
क्यो हमे इंसान बनाने के लिए बेचैन हैं
हम गधे हैं, कैसे समझे आपकी क्या गरज हैं
आज का संगीत सुनकर हम भी खुद शर्मा गए
रेंकने की क्या अनोखी संशोधित तर्ज़ है
हम गधे हैं मगर इतने गधे भी तो नहीं
ये न समझे एक सेहतमंद को क्या मर्ज़ है
Friday, November 30, 2007
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2 comments:
waah waah kya likha hai.
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