Friday, November 30, 2007

विवेक भटनागर की ग़ज़लें

विवेक भटनागर
शांत वाणी और मधुर स्वाभाव के विवेक भटनागर अमर उजाला में सम्पादकीय टीम के सम्मानित सदस्य हैं, यह शख्सियत कविता और ग़ज़ल में माहिर है, इनकी रचनाओ में स्वस्थ परंपरा और ताजगी का एहसास तो है ही, गज़ब कि संवेदनशीलता भी है थोडे में कहा जाये, तो कम बोलने वाली वजनी शख्सियत


हम गधे हैं तो गधा ही रहने दो, क्या हर्ज़ है
आपसे हर हाल में बेहतर हैं, आदाब अर्ज़ है

क्यो हमे इंसान बनाने के लिए बेचैन हैं
हम गधे हैं, कैसे समझे आपकी क्या गरज हैं

आज का संगीत सुनकर हम भी खुद शर्मा गए
रेंकने की क्या अनोखी संशोधित तर्ज़ है

हम गधे हैं मगर इतने गधे भी तो नहीं
ये न समझे एक सेहतमंद को क्या मर्ज़ है

2 comments:

Anonymous said...

waah waah kya likha hai.

विवेक भटनागर said...
This comment has been removed by the author.