नाम : इंसान
काम : स्वार्थ
शौक : कपट
अनुभव : इंसानियत को मारना
इच्छा ? महत्वाकांक्षा : पता नही
समस्त वातावरण शोकातुर. एक घटना घट गयी है,यहा. एक इंसान ने इंसान का खून किया है. बाकी सब इंसान स्तब्ध है. इंसान मर गया. मगर ऊसे मारनेवाला इंसान कौन?
ग़मगीन नीरवता को चीरती हुई एक राजकीय आवाज़ : चलो, हटो, दूर हटो, मंत्री जी आ रहे है.
जाँच करने के लीये दिया वचन, आश्वासन, क्रूत्रिम वातावरण और नीरवता को च्छोद्कर अपनी दिन चर्या मे बिखरे हुए इंसान.
समाचार का वक्त और इंसान मौन. इंसान के समाचार :........... ज़ख्मी, मरे, लड़े, कटे, गीरे. बहरे कानो को छूती हुई एक सहानूभूति की लहर और फिर चाय की चूसकिया.
मैं, मौन क्यों हूँ?............क्यों???????
क्यों........मूझे कूछ नही होता?
मेरा खून किस लिए जम गया है?
मैं क्यों फ्रीज कोल्ड हो गया हूँ?
मेरी दादी माँ की कहानियों के इंसानो की तरह क्यों मैं घोड़े पर सवार होकर सात समूउनदर पार के राक्षस के पंजे मैं फासी राजकुउमारी को बचा नही सकता?.................क्यों?
मेरे आसपास के इंसानों के साथ मैं कैसी बनावट कार रहा हूँ?
दीवार की तरह, सीमेंट की तरह, पत्थर की तरह कठोर बन गया हूँ.
मूझपर क्यो कोई असर नही होता? मेरा किसी सा कोई लेनदेन नही. ऊन इतिहास के पन्नो पर अंकित शूरवीर सच होंगे? प्रजापालक राजा रात को भेस बदलकर प्रजा के सूख दूख के समाचार जानता है. क्यों विश्वास नही होता ऐसी बातों का? बिना ताले के मकान, विश्वास का सिंचन, समूनदर की गहराई जैसे ऊडार और भोले घाले इंसान. मूफ्त का खाना नही और अतिथि देवो भाव:. ओह माय गोड्ड. आय कांट बिलीव दिस.
भगवान का श्रेष्ठ सर्जन ............. इंसान !!!!
मानवता के लिए मर मिटनेवाला और इंसानियत के लिए जान छीदकने वाला इंसान आज कहाँ है?
इंसान !!!!!
आज धरती पर गंदगी की परत फैलाकर, समंदर को मैला कर के, आकाश पर अधिपत्य जमाने की धूंन मे अपनी इंसानियत को सम्हाल ना सका.
श.......शा...................श................... सावधान, विश्वास घात, दगा..............
बी अलर्ट !!!! इंसान कन्फ्यूज हो गया है. वह सो नही सकता, मजे लूट नही सकता, क्योंकि इंसान डरा हुआ है, इंसान का नाम इंसान के हिट लिस्ट मैं है. इंसान अशांत है और शांति के लिए यूध की तैयारिया कर रहा है.
दर से घिरा हुआ, मानसिक विकरउटी से पीड़ित और फटे हुए चरित्रा से गूनहित ज़िंदगी को छुपाने का व्यर्थ प्रयत्ना करता हुआ, ....इंसान!!
इंसान खो गया है. .....................
फला उम्र का, फला प्रदेश का, फला धर्म का, फला कौम का...........इंसान गुम हो गया है. यदि किसी को इंसान मील जाए तो उसे गूज़रिश है की इंसान को इंसान के पते पर जानकारी दे........मुझे......
एक इंसान को ख्वाब आया......... सभी इंसान पक्षियों की तरह निस्वार्थ, मूक्त, ...... मोर की तरह चहकते और तारों की तरह टिमटिमाते इंसान..........आआआआआआ हा हहहहहहहहहा!!!!!.....श्वान की तरह्व वफादार और विश्वसनीय.....इंसान.....अश्व की तरह शक्तिशाली, इंसान. हिरण और हंस की तरह सज्जन इंसान.......चिड़िया, गिलहरी की तरह निर्दोष और भोले भाले इंसान...!!!!!!!!!!!!
सरकती हुई रात के साथ ख्वाबो की यादे मीठी लगाने लगी और एक पल तो लगा की ईश्वर से प्रार्थना करे की इंसान की अदाकारी मैं निष्फल जाने के बदले मैं हमे पशु जन्म दे.
लेकिन यदि भगवान इंसान को पशू जन्मा देगा तो सत्य छिइक उउठेगा और कहेगा की गूनाह गारों को इनाम?????????
नही.........नही...... प्रभू!!! हमे इंसानियत को लज्जित नही सरना है. मानवता का खून नही करना.
गूनाहों की रातो से, हरे भरे ख्वाबो से खिलती हुई इंसानियत की सुउबाह ले आ ... प्रभू!!!
हमारे प्रायस्चित के लिए हमे इंसानियत के प्लेट फार्म पर एक बार फिर..... फिर एक बार इंसानियत का नाटक करने दे... प्रभू!! हम अपनी भूमिका निभाएंगे . हम आपके दिग्दर्शन मे बेस्ट एक्टिंग का एवार्ड जीत जाएंगे....................
Saturday, October 4, 2008
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6 comments:
bahut din bad blogging kee dunia me laute. badhai. kuchh samay nikalkar apne blog par likhte rahiye.
सही है-जरुर होगा. नियमित लिखें.
प्रिय अनुराग, आपने कहीं राजेन्द्र अवस्थी का काल चिंतन तो नहीं पढ़ लिया?
इंसानियत का नाटक करने दे... प्रभू!! हम अपनी भूमिका निभाएंगे . हम आपके दिग्दर्शन मे बेस्ट एक्टिंग का एवार्ड जीत जाएंगे....................
सोचने को मजबूर करती हैं आपकी लिखी हुई पक्तियां।
यही सोच बनी रहे - प्रशंसनीय प्रस्तुति - शुभकामनाएं
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