पावन बाइबिल में जब ख़ुदा ने मिट्टी से इन्सान बनाया और उसे जन्नत में बसाया तो उसे आदम (प्रथम मानव) के अकेलेपन पर तरस आया तब ख़ुदा ने उसे गहरी नींद में सुलाकर उसकी पसलियों में से एक को निकाल कर उसे औरत का रुप दिया और उसे आदम का साथी बनाया जीवन की गाड़ी के दो पहिये कहे जाने वाले नर और नारी के लिए इस पुरुष प्रधान समाज की बनाई हुई मान्यताएँ हैं, जिससे लड़का और लड़की की संख्या का अनुपात ख़तरे में पड़ता जा रहा है निदा फ़ाज़ली कहते हैं
कैसा शजरा (वंशावली) कहाँ के दीन धरम
ख़ून तो जिस्म ही बनाता हैजिस्म को
शख़्सियत बनाने में सिर्फ़ माहौल काम आता है
मैं जहाँ हूँ, वहीं है घर मेराउसी घर में रिवाज है
मेरा इसी घर से समाज है मेरा
जाहिर है समाज बदला हैं पर रिवायते नही
इव ने एडम को था जन्नत से निकलवाया
कलंक उस कसूर का मिट आज तलक न पाया
हर जन्म हर युग में सज़ा नारी ने इसकी पाई
वफा करके भी हिस्से में उसके आई बेवफाई
पत्नी धर्म सीता ने अन्तिम सांस तक निभाया
परन्तु अकारण राम ने उसे वन में था पठाया
द्रोपदी के वीर पति थे उसके सिर का ताज
पर भरी सभा में उसकी लगी दांव पर लाज
कलियुग में लगाई जाती सरे-राह उसकी बोली
कोई खींचता है आँचल कोई तार करे चोली
जिस जननी ने जन्म दे इस दुनिया को बसाया
अनेकों बार कोख में गया उसको ही मिटाया
बेटी का जन्म आज भी नज़रों को है झुकाता
है बाँधती वो घर को पर पराई कहा जाता
जीवन के हर क्षेत्र में सदा आगे है खड़ी
पर दहेज की वेदी पर अक्सर बलि है चढ़ी
फर्ज़ और प्रेम के पाटों में रहे पिसती
सौगात तो अनमोल है पर कौड़ियों में बिकती
हे नाथ! नारी जाति को अब तो क्षमा का दान दो
अन्य प्राणी जगत् की तरह जीने का हक समान दो
2 comments:
bahut accha likha hai
निदा फ़ाज़ली की रचना प्रस्तुत करने का आभार.
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