हर कामना में विजय का आभास लिए
अपने मन में एक नया विश्वास लिए
है जंग बहुत लंबी
दिल में जीतने की उम्मीद भरी
कभी लगती है डगर सपनों वाली है
माना स्वपन की भाषा खुशबू सही
पर जिंदगी की भाषा तो निर्मल पानी है
दोनो ही भाषा है अकल्पनीय, अकथित
लेकिन दीपक कि भाषा तो ये ही जाने
कि अधेरें में मुझे रोशनी लानी है
अनुराग
Saturday, December 8, 2007
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1 comment:
मुझे तुम़हारी कािबिलयत पर काेइऍ शक नहीं था तुमने एक बार िफर सािबत िकया िक तुम कािबल हाे
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